नई दिल्ली
'भारत अपनी 140 करोड़ की आबादी पर गर्व करता है, लेकिन अमेरिकी कृषि निर्यात के मामले में बहुत कम खुलापन दिखाता है. भारत शेखी बघारता है कि उसकी आबादी 140 करोड़ है, फिर वो हमसे एक बुशल (25.40 किलो) मक्का तक क्यों नहीं खरीद रहा? वो हमारा मक्का नहीं खरीदेगा. वो हर चीज़ पर टैरिफ़ लगा देता है.' अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने दो दिन पहले यह बयान दिया था. तेल और हथियारों के बाद अमेरिका ने मक्के के मुद्दे पर भारत का मज़ाक उड़ाने की कोशिश की है.
ट्रंप के मंत्री क्यों हैं परेशान
ट्रंप के मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने अमेरिकी मक्का आयात करने की 'अनिच्छा' को लेकर भारत पर निशाना साधा. लेकिन भारत, अमेरिका से मक्का क्यों खरीदेगा, जबकि वह टॉप 10 प्रोड्यूसर्स में से एक है और हाल तक निर्यातक भी था? हालांकि यह सवाल जायज़ है. लेकिन भारत के इथेनॉल मिश्रण ने एक साधारण समीकरण को जटिल बना दिया है. इसमें वॉशिंगटन की ज्यादा मक्का बेचने की बेचैनी भी शामिल है, जबकि चीन अपने अनाज का इस्तेमाल करने से कतरा रहा है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वरिष्ठ सहयोगी लुटनिक, जो रूसी तेल व्यापार को लेकर नई दिल्ली पर हमला करते रहे हैं, ने पूछा कि अमेरिका से भारत मक्का का आयात क्यों नहीं करता. उन्होंने कहा, 'क्या यह बात आपको बुरी नहीं लगती कि वे हमें सब कुछ बेचते हैं और वे हमारा मक्का नहीं खरीदते. वे हर चीज पर टैरिफ लगाते हैं.' मक्का अमेरिका के शीर्ष कृषि निर्यातों में से एक है. अमेरिका सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का करीब 30-32% हिस्सा है.
भारत खुद मक्का का उत्पादक
भारत, जो सालाना करीब 42 मिलियन टन मक्का का उत्पादन करता है. वैश्विक उत्पादन का तीन फीसदी अतिरिक्त मक्का निर्यात करता रहा है. 2022-23 में, भारत ने मक्का निर्यात से 10,107 मिलियन डॉलर कमाए थे. हालांकि लुटनिक अपने प्रस्ताव में गंभीर रहे हैं, लेकिन लोगों ने इस विडंबना को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया है. एक आत्मनिर्भर देश को आयात करने के लिए कहना क्योंकि आपके पास सपप्लस है और आपको नहीं पता कि उपज कहां फेंकनी है. यह कुछ और नहीं बल्कि नव-औपनिवेशिक (Neo-colonial) बर्ताव का प्रदर्शन है.
तक्षशिला संस्थान के सहायक स्कॉलर उंझवाला ने एक्स पर लिखा, '…यह ऐसा है जैसे अमेरिका सऊदी अरब से कह रहा हो कि वह उसका [अमेरिकी] तेल खरीद ले.' हालांकि, लुटनिक के हमले को भारत की मक्का निर्यातक से आयातक की स्थिति में हाल ही में हुए बदलाव से जोड़ा जा सकता है.
क्यों करना पड़ा मक्का का इंपोर्ट
भारत को मक्का का आयात करना पड़ा क्योंकि उसने ईंधन में इथेनॉल मिश्रण को बढ़ा दिया था, जबकि 2023 में महाराष्ट्र में सूखे जैसी स्थिति बनी हुई थी. पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण को 20% (E20) तक ले जाने की होड़ की वजह से मक्का को पोल्ट्री और स्टार्च उद्योगों जैसे पारंपरिक बड़े उपभोक्ताओं से बड़े पैमाने पर डिस्टिलरी में ट्रांसफर कर दिया गया.
इंडिया टुडे डिजिटल के सहयोगी पोर्टल किसान तक के संपादक ओम प्रकाश कहते हैं, 'हर साल करीब 3-4 मिलियन टन मक्का का निर्यात किया जा रहा था, लेकिन 2024 में इथेनॉल उत्पादन की वजह से भारत मक्का का नेट इंपोर्टर बन गया.' ओम प्रकाश कहते हैं, 'पिछले साल भारत ने इथेनॉल उत्पादन के लिए 10 मिलियन टन मक्का का इस्तेमाल किया, जो अब तक का सर्वाधिक उत्पादन है.'
भारत में गन्ना इथेनॉल का सबसे बड़ा स्रोत था. सूखे जैसी स्थिति के कारण, केंद्र ने दिसंबर 2023 में इथेनॉल के लिए गन्ने के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था, और यह अगस्त 2024 तक लागू रहा. यह प्रतिबंध रसोई के प्रमुख खाद्य पदार्थ चीनी के उत्पादन और कीमतों को स्थिर रखने के लिए लगाया गया था.
भारत पेट्रोल में इथेनॉल क्यों मिला रहा है?
सरकार पेट्रोल में इथेनॉल मिलाकर तेल आयात बिल कम करने और इस तरह विदेशी मुद्रा बचाने की योजना बना रही है. इस मिश्रित मोटर ईंधन से उत्सर्जन भी कम करने का मकसद है. इस बात पर बहस चल रही है कि क्या भारत में मोटर इंजन इथेनॉल की उच्च मात्रा के लिए तैयार हैं, लेकिन यह एक अलग मुद्दा है. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जुलाई में कहा कि भारत ने 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है, जो मूल लक्ष्य से पांच साल पहले है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम जनवरी 2003 में शुरू किया गया था, लेकिन इसे वास्तविक प्रोत्साहन 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मिला. इस बीच, सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि इथेनॉल उत्पादन 2014 के 38 करोड़ लीटर से बढ़कर जून 2025 तक 661.1 करोड़ लीटर हो गया है. हालांकि सरकार ने E20 टारगेट को डेडलाइन से 5 साल पहले ही हासिल कर लिया, लेकिन देश को मक्के के आयात पर मजबूर होना पड़ा.
इथेनॉल मिश्रण ने मक्का आयातक कैसे बना दिया
भारत में मक्का का इस्तेमाल भोजन, चारे और ईंधन के रूप में किया जाता है. लेकिन इसी क्रम में नहीं. किसान तक के ओम प्रकाश ने 2021-22 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, 'भारत में करीब 47% मक्का का इस्तेमाल पोल्ट्री फीड में किया जाता है, जबकि 13% का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में और 14% स्टार्च उद्योग के लिए और 12% अन्य उद्योगों के लिए किया जाता है.' ओम प्रकाश कहते हैं, 'हाल के वर्षों में इथेनॉल के उत्पादन में मक्के के इस्तेमाल की वजह से इसका औद्योगिक उपयोग बढ़ा है.'
पिछले सितंबर में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आमतौर पर 20 से 40 लाख मीट्रिक टन मक्के का निर्यात करता था, लेकिन 2024 में यह स्थिति बदल गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल मक्के की 50 लाख टन की कमी थी. अमेरिका अपने मक्के को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत के सामने एक समस्या है.
अमेरिका में मक्के की खेती 9 करोड़ एकड़ से ज़्यादा क्षेत्र में फैली हुई है, ज़्यादातर 11 राज्यों में इसका उत्पादन होता है. रस्ट बेल्ट की तरह, अमेरिका में भी एक कॉर्न बेल्ट है जहां हज़ारों एकड़ ज़मीन पर सुनहरे-भूरे रंग की कालीन बिछी है. फिर भी, इसका एक छोटा सा हिस्सा ही खाने की थाली में पहुंचता है. अमेरिका अपने यहां उगाए गए मक्के का 10% से भी कम अनाज, कॉर्न सिरप या प्रोसेस्ड फूड के रूप में इस्तेमाल करता है. हालांकि, जब बात भारत की ओर से आयात की आती है तो इसमें बड़ी बाधा आती है.
यूएस एफडीए के मुताबिक साल 2020 में अमेरिकी किसानों की ओर से बोए गए 92% से ज्यादा मक्के की फसल GM किस्मों की थी. यह भारत के लिए एक बड़ी बाधा है, जो जीएम मक्के के आयात और बुवाई पर प्रतिबंध लगाता है. रॉयटर्स के अनुसार, भारत ने म्यांमार और यूक्रेन से मक्का का आयात किया है, जहां गैर-जीएम किस्में उगाई जाती हैं.
अमेरिका मक्का निर्यात करने को बेचैन क्यों है?
अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य सब्सिडी और समर्थन के लिए मशीनों के साथ, अमेरिकी किसानों की तरफ से 2025-26 में रिकॉर्ड 427 मिलियन टन मक्का उगाने की संभावना है, जो पिछले साल के उत्पादन से 12.5% ज्यादा है. गैर-जरूरी मक्के से घिरे अमेरिका को नए बाज़ारों की तलाश करनी पड़ रही है. डीसी की नीतियों को प्रभावित करने वाली मक्के और इथेनॉल की एक बड़ी लॉबी है.
चीन, जो अमेरिकी मक्का का प्रमुख आयातक बनकर उभरा था, अब मुख्य रूप से ब्राजील से मक्का खरीद रहा है. 2024 रॉयटर्स की एक टिप्पणी के मुताबिक, 2020-21 में अमेरिका के मक्का निर्यात का रिकॉर्ड 31% चीन को गया, लेकिन 2023-24 में यह 6% से नीचे गिर गया. 2023-24 में ब्राज़ील से चीन को मक्का की आपूर्ति बढ़कर 29% हो गई. रिपोर्टों के अनुसार, सोयाबीन, जो एक अन्य प्रमुख अमेरिकी निर्यात है, के मामले में चीन ने सितंबर और अक्टूबर के लिए अमेरिका से एक भी टन की खरीद नहीं की.
यही कारण है कि लुटनिक भारत को मक्का बेचने के लिए बेचैन है. यह हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए कि मक्के को लेकर भारत पर उनका हमला ऐसे समय में आया, जब ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया है कि अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता फिर से शुरू होगी. भारत की तरफ से अपने एग्रीकल्चर और डेयरी सेक्टर पर रेड लाइन खींचने और नई दिल्ली की तरफ से रूस से तेल खरीद पर ट्रंप के हमलों के कारण वार्ता अस्थायी रूप से रुक गई थी.
भारत को इथेनॉल के लिए ज़्यादा मक्के की ज़रूरत पड़ रही है, और अमेरिका में इसकी भरमार है. ऐसे में लुटनिक ने स्वाभाविक रूप से नई दिल्ली को ही एक विकल्प माना होगा. अगर कोई तेल नहीं बेच सकता, तो उस तेल में मिलाए जा रहे मिश्रण को क्यों न बेचे? हालांकि, यह बेतुका है.