पटना
क्या बिहार महागठबंधन में सब कुछ ठीक है? यह सवाल तब से खड़ा होना शुरू हुआ है जब से तेजस्वी यादव ने अपनी अलग ‘बिहार अधिकार यात्रा’ निकालने की घोषणा की है. अब तक महागठबंधन के प्रमुख दल राजद और कांग्रेस के बीच की खटपट साफ तौर पर सियासी सतह पर दिखाई देने लगी है. हाल में ही इसकी एक बानगी बिहार के औरंगाबाद में तब दिखी जब कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम के आमंत्रण के बावजूद राजद का कोई भी नेता वहां नहीं पहुंचा. जानकारी के अनुसार, औरंगाबाद के कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र में बीते 13 दिसंबर को एक सम्मेलन बुलाया गया था. कांग्रेस अध्यक्ष के बुलाए गए इस सम्मेलन में राजद नेताओं के नहीं आने से कांग्रेस के अंदर इसको लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही है. खास बात यह है कि अब इसी विवाह भवन में आरजेडी सम्मेलन अपना सम्मेलन कर रहा है. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस और राजद के भीतर तल्खी इतनी बढ़ गई हैं कि दोनों दलों के बीच की दरारें साफ-साफ नजर आने लगी हैं!
कांग्रेस का आमंत्रण और राजद का बहिष्कार
दरअसल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के आयोजित सम्मेलन में राजद के नेताओं के नहीं पहुंचने की खबर ने गठबंधन के उठापटक को और हवा दी है. बता दें कि राजद के नेता तेजस्वी यादव 16 सितंबर से अपनी अलग राजनीतिक यात्रा निकाल रहे हैं. बताया जा रहा है कि यह स्थिति कांग्रेस के तेवरों को भांपते हुए गठबंधन में राजद के अलगाव की स्थिति की ओर इशारा कर रही है. तेजस्वी यादव के अलग कार्यक्रम और इससे पहले औरंगाबाद में कांग्रेस के कार्यक्रम का राजद नेताओं के बायकाट के साथ ही राजद की ‘एकला चलो’ वाली सक्रियता यह संकेत दे रही है कि महागठबंधन में कुछ तो गड़बड़ है. बताया जा रहा है कि तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस घोषित नहीं किये जाने से आरजेडी असंतुष्ट है. जानकारों की नजर में कांग्रेस-आरजेडी की इस तल्खी से महागठबंधन में समन्वय बिगड़ रहा है और सहयोगी दलों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं.
तेजस्वी की बिहार यात्रा का रोडमैप
तेजस्वी यादव की मंगलवार से शुरू हो रही 'बिहार अधिकार यात्रा' का आगाज़ जहानाबाद से होगा. इसके बाद तेजस्वी नालंदा, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, समस्तीपुर के रास्ते वैशाली तक का सफर तय करेंगे. इस तरह तेजस्वी यादव अपनी यात्रा के दौरान नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा जिले से होकर गुजरेंगे तो गिरिराज सिंह के गढ़ बेगूसराय और पप्पू यादव के मधेपुरा और सुपौल की यात्रा भी करेंगे.
बिहार के जिन जिलों से होकर तेजस्वी यादव गुजरेंगे, वो इलाका बीजेपी और जेडीयू का मजबूत गढ़ माना जाता है. इस तरह से एक बात साफ है कि तेजस्वी 'बिहार अधिकार यात्रा' के जरिए अपने कमज़ोर माने जाने वाले गढ़ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर आरजेडी के पक्ष में सियासी माहौल बनाने की कवायद करेंगे.
तेजस्वी को क्यों निकालनी पड़ रही यात्रा?
राहुल गांधी की यात्रा समाप्त हुए अभी 15 दिन ही गुज़रे हैं कि तेजस्वी यादव अकेले बिहार यात्रा पर निकलने जा रहे हैं. राहुल गांधी के साथ तेजस्वी ने वोटर अधिकार यात्रा के जरिए 1300 किलोमीटर का सफर तय किया है और अब तेजस्वी अकेले दस जिलों की यात्रा पर निकल रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राहुल गांधी ने अपनी वोटर अधिकार यात्रा से बिहार कांग्रेस में एक नई जान फूँक दी है. राहुल गांधी के साथ यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव को भी प्रमुखता मिली, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भी जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा. राहुल की यात्रा का सियासी लाभ आरजेडी को कम, कांग्रेस को ज़्यादा मिला है.
यात्रा से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और सीट शेयरिंग से लेकर मुख्यमंत्री चेहरे के सवाल पर अपनी मर्ज़ी की बात रख रही है. कांग्रेस यह बताने में जुट गई है कि वो आरजेडी के बैसाखी के सहारे नहीं, बल्कि उसका अपना जनाधार और राजनीतिक कद है. राहुल गांधी ने अपने भाषणों से जनता को यह संदेश दिया कि कांग्रेस बिहार के मुद्दों को लेकर गंभीर है.
तेजस्वी यादव अकेले यात्रा निकालकर आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने की रणनीति अपनाए हैं. यही वजह है कि आरजेडी की तरफ से तेजस्वी के यात्रा का संदेश सिर्फ पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को भेजा गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि तेजस्वी यादव अपनी खुद की यात्रा से यह साबित करना चाहते हैं कि वह महागठबंधन के निर्विवाद नेता हैं और मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में जनता की पहली पसंद हैं.
तेजस्वी जनता से सीधे जुड़ने का प्लान
तेजस्वी यादव अपनी यात्रा के जरिए एक तरफ जहां अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं. आरजेडी नेता संजय यादव कहते हैं कि राहुल गांधी के साथ जो यात्रा थी, वो एसआईआर के मुद्दे पर रही है. वह वोटर अधिकार यात्रा थी और अब तेजस्वी बिहार के अधिकार के लिए यात्रा पर निकल रहे हैं.
संजय कहते हैं कि तेजस्वी यादव अपनी यात्रा के दौरान किसान, नौजवान, महिलाएं, बुजुर्ग और रोज़गार के मुद्दे को उठाएंगे और लोगों के साथ संवाद करेंगे. चुनाव के दौरान हर पार्टी अपने लिहाज़ से रणनीति बनाती है, उसी तरह आरजेडी ने अपनी रणनीति बनाई है. तेजस्वी की लोकप्रियता बिहार में सबसे ज़्यादा है और वे प्रदेश के सभी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं, जनता से सीधे संवाद कर रहे हैं.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी का यह कदम सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. तेजस्वी अपने पिता आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की तरह जनता से सीधे तौर पर संवाद और उनसे जुड़ना चाहते हैं. लालू यादव भी हमेशा यात्राओं और रैलियों के जरिए लोगों से सीधे संवाद करते थे. तेजस्वी की यह यात्रा लालू की उस विरासत को आगे बढ़ाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है.
आरजेडी ने तेजस्वी की यात्रा को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी ने सभी जिलाध्यक्षों और विधायकों को साफ निर्देश दिया है कि वे तैयारी में कोई कसर न छोड़ें. यात्रा जिन-जिन विधानसभा क्षेत्रों से गुज़रेगी, वहाँ पर भीड़ जुटाएँ ताकि तेजस्वी यादव जनता से सीधे संवाद कर सकें. खास बात यह होगी कि हर इलाके के लिए एक ही जगह पर कार्यक्रम तय किया गया है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग एकजुट होकर यात्रा का हिस्सा बन सकें.
कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव
राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव ने 17 दिन तक बिहार की सियासी ज़मीन को नापने का काम किया. इस दौरान तेजस्वी यादव ने राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तक बता दिया, लेकिन कांग्रेस तेजस्वी के चेहरे पर नहीं पिघली. तेजस्वी की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों ही खामोशी अख्तियार किए हुए थे. इतना ही नहीं, बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्ण अल्लावरू ने यहाँ तक कह दिया है कि बिहार की जनता तय करेगी कि कौन मुख्यमंत्री होगा?
बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी के साथ 15 दिन घूमकर देख लिया. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने तक की बात कह डाली, लेकिन कांग्रेस ने उनके नाम पर मुहर नहीं लगाई. इसीलिए अब खुद निकल रहे हैं ताकि अपनी ब्रांडिंग कर सकें, लेकिन बिहार की जनता उनके पिता का कार्यकाल देख चुकी है. तेजस्वी कुछ भी कर लें, लेकिन बिहार की जनता उन्हें स्वीकार नहीं करेगी.
बिहार में आरजेडी शुरू से महागठबंधन में खुद को बड़े भाई के तौर पर रखती रही है. इसी आधार पर वह सीटों के बंटवारे पर अपनी शर्तें रखती रही है. कांग्रेस के बदले हुए सियासी रवैये को देखते हुए तेजस्वी यादव बिहार यात्रा पर निकल रहे हैं. तेजस्वी अपनी यात्रा से यह बताना चाहते हैं कि असली जनाधार आज भी आरजेडी के पास है और आरजेडी के सहारे ही कांग्रेस की सियासी नैया पार होगी.
राजद से कांग्रेस की नाराजगी का कारण
इस बीच कांग्रेस के अंदर यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित न करने की वजह से राजद ने कांग्रेस की महत्वाकांक्षाओं को नजरअंदाज किया है. इस नाराजगी के कारण कांग्रेस ने महागठबंधन के सहयोग में कमी महसूस की है और पार्टी का मानना है कि यदि इस तरह के टकराव जारी रहे तो गठबंधन कमजोर पड़ सकता है. इस बीच राजद और कांग्रेस के बीच इस खटपट से बिहार के महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं. जानकार बता रहे हैं कि अगर यही स्थिति रही तो आगामी चुनाव में सहयोगी दलों की इस टकराव से विपक्ष की कमजोर स्थिति बन सकती है जिससे एनडीए को फायदा हो सकता है. दोनों दलों को आपसी समझ और सहयोग नहीं रहा तो महागठबंधन की राह कठिन हो सकती है.
एनडीए को मिल सकता है फायदा
इस बीच खबर है कि राजद और कांग्रेस के बीच बातचीत जारी है और तल्खी कम करने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं. सूत्र बताते हैं कि वोटर अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस ने अपने तेवर थोड़े नर्म किये हैं और सीट शेयरिंग मामले में नई शर्त रखी है. कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री पद की मांग के साथ चुनाव में उतरने पर सीटों की संख्या को लेकर भी थोड़ा नर्म पड़े हैं. बताया जा रहा है कि अब कांग्रेस उपमुख्यमंत्री पद के दावे के साथ 70 के बजाय 50 से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की ओर संकेत किया गया है. वहीं, खबर यह भी है कि उपमुख्यमंत्री के पद पर सहमति नहीं बनने पर कांग्रेस 2020 की तरह ही इस बार भी 70 सीटों से कम पर लड़ने को तैयार नहीं होगी.