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भारत रूस से तेल खरीदे, ये हमारी मर्जी थी – ट्रंप के बयान से उजागर हुआ अमेरिकी पाखंड

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Last updated: August 5, 2025 2:02 pm
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भारत रूस से तेल खरीदे, ये हमारी मर्जी थी – ट्रंप के बयान से उजागर हुआ अमेरिकी पाखंड
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नई दिल्ली

पिछले कुछ हफ्तों से वैश्विक कूटनीति और व्यापार के मंच पर एक नया तूफान खड़ा हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को रूस से तेल और हथियार खरीदने के लिए 25% टैरिफ और अतिरिक्त पेनल्टी की धमकी दी है। उनका दावा है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुनाफे के लिए बेच रहा है, जिससे रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक मदद मिल रही है। लेकिन यह कहानी उतनी सीधी नहीं है, जितनी दिखाई देती है। भारत में पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी का एक बयान फिर से वायरल हो रहा है जिससे इस कहानी में अमेरिका का पाखंड साफ दिख रहा है। गार्सेटी ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका खुद चाहता था कि भारत रूस से तेल खरीदे ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिर रहे। तो फिर अब यह पलटवार और धमकियां क्यों? क्या यह अमेरिका का पाखंड है या ट्रंप का कूटनीतिक दोगलापन? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
अमेरिका का दोहरा चेहरा

2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए। इसके परिणामस्वरूप, रूस ने अपने तेल को रियायती दरों पर बेचना शुरू किया। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 80% से ज्यादा आयात करता है, उसने इस अवसर का लाभ उठाया। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों को स्थिर करने में भी योगदान दिया। उस समय अमेरिका ने भारत के इस कदम को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे प्रोत्साहित भी किया। भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने स्पष्ट कहा था कि भारत का रूस से तेल खरीदना वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए जरूरी है। पिछले साल 2024 में 'कॉन्फ्रेंस ऑन डायवर्सिटी इन इंटरनेशनल अफेयर्स' में बोलते हुए गार्सेटी ने कहा, "भारत ने रूसी तेल इसलिए खरीदा क्योंकि हम चाहते थे कि कोई रूसी तेल को मूल्य सीमा (प्राइस कैप) पर खरीदे। यह कोई उल्लंघन नहीं था, बल्कि यह नीति का हिस्सा था, क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि तेल की कीमतें बढ़ें, और भारत ने इसे पूरा किया।"

लेकिन अब वही अमेरिका भारत पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगा रहा है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, "भारत न केवल रूस से भारी मात्रा में तेल खरीद रहा है, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचकर मुनाफा कमा रहा है। उन्हें यूक्रेन में रूसी युद्ध मशीन के कारण होने वाली मानवीय त्रासदी की कोई परवाह नहीं।" यह बयान न केवल भारत की ऊर्जा नीति को गलत ठहराता है, बल्कि यह भी भूल जाता है कि भारत का यह कदम अमेरिका की सहमति से ही उठाया गया था।
भारत की ऊर्जा नीति और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, और रूस उसका सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है। 2022 के बाद से भारत की कुल तेल आपूर्ति का लगभग 35-40% रूस से आता है। यह सस्ता तेल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुआ है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत के पास रूस के अलावा भी तेल आपूर्ति के विकल्प हैं, जैसे सऊदी अरब, इराक, यूएई और ब्राजील। लेकिन रूस से सस्ता तेल खरीदना भारत के राष्ट्रीय हित में है, क्योंकि इससे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें नियंत्रित रहती हैं और महंगाई पर अंकुश लगता है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "भारत की ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हित और वैश्विक बाजार की मजबूरियों पर आधारित है। अमेरिका और यूरोपीय देशों की आलोचना अनुचित है, खासकर तब जब ये देश स्वयं रूस से व्यापार कर रहे हैं।" भारत ने आंकड़ों के साथ दिखाया कि 2024 में यूरोपीय संघ और रूस के बीच 67.5 अरब यूरो का व्यापार हुआ, जो भारत-रूस व्यापार से कहीं ज्यादा है। यह सवाल उठता है कि जब यूरोप और अमेरिका खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, तो भारत को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है?
ट्रंप का दोगलापन: भारत बनाम चीन

ट्रंप की धमकियों में एक और विरोधाभास साफ दिखता है। वह भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए टैरिफ और पेनल्टी की धमकी दे रहे हैं, लेकिन चीन के मामले में उनकी आवाज अपेक्षाकृत नरम है। चीन रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, जो रूस के कुल तेल निर्यात का 47% खरीदता है। फिर भी, ट्रंप ने चीन के खिलाफ उतनी सख्ती नहीं दिखाई, जितनी भारत के खिलाफ। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह ट्रंप की कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। अमेरिका के लिए चीन एक बड़ा व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी है और ट्रंप शायद चीन के साथ व्यापार युद्ध को और तीव्र नहीं करना चाहते। दूसरी ओर, भारत को एक आसान निशाना माना जा रहा है, क्योंकि भारत-अमेरिका संबंधों में मित्रता का तत्व मजबूत है।
अपने मुनाफे के लिए भारत पर निशाना

अमेरिका ने यूक्रेन के साथ हाल ही में एक रेयर अर्थ मिनरल्स डील की है, जिसके तहत वह यूक्रेन के विशाल खनिज संसाधनों, जैसे लिथियम, टाइटेनियम और रेयर अर्थ तत्वों, का दोहन करना चाहता है। यह डील अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये खनिज हाई-टेक उद्योगों, रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए आवश्यक हैं। अमेरिका का मानना है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते इन संसाधनों का खनन मुश्किल हो रहा है, इसलिए वह युद्ध को जल्द खत्म करने की दिशा में कदम उठा रहा है। इस डील के जरिए अमेरिका न केवल अपनी खनिज आपूर्ति को सुरक्षित करना चाहता है, बल्कि चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों पर निर्भरता को भी कम करना चाहता है, जो इन खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। हालांकि, जब अमेरिका रूस को सीधे तौर पर प्रभावित करने में असमर्थ रहा, तो उसने रणनीति बदलकर रूस के करीबी सहयोगियों, जैसे भारत, को निशाना बनाना शुरू किया।
टैरिफ का भारत पर असर

ट्रंप की धमकी अगर हकीकत बनती है, तो भारत को कई मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। भारत हर साल अमेरिका को 83 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात करता है, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और आईटी सेवाएं शामिल हैं। 25% टैरिफ लागू होने से ये सामान अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे भारत का निर्यात प्रभावित होगा। इसके अलावा, अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद करता है, तो उसे मिडिल ईस्ट या अन्य स्रोतों से महंगा तेल खरीदना पड़ेगा। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका सीधा असर भारतीय मध्यम वर्ग और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

हालांकि, भारत ने इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा। कुछ भारतीय तेल रिफाइनरियों ने रूस से तेल आयात अस्थायी रूप से रोका है, लेकिन रिलायंस और नायरा जैसी निजी कंपनियां अभी भी रूस से तेल खरीद रही हैं। यह दिखाता है कि भारत अपनी स्वतंत्र नीति पर कायम है।

भारत ने ट्रंप की टैरिफ धमकी का मुंहतोड़ जवाब दिया, अमेरिका और ईयू के डबल स्टैंडर्ड को उजागर किया

अमेरिका खुद को दुनिया का चौधरी मानता है. बात-बात पर सबको टैरिफ की धमकी देता है. मगर भारत भी पहले वाला भारत नहीं. यह नया भारत है. चुपचाप रहता नहीं. जब कोई देश आंख उठाता है तो उसका मुंहतोड़ जवाब देता है. डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकी पर भी भारत ने कुछ ऐसा ही किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकी पर भारत ने अब तक का सबसे बड़ा जवाब दिया है. विदेश मंत्रालय ने न केवल जवाब दिया, बल्कि अमेरिका और ईयू का धागा खोल दिया और कहा कि खुद करो तो ठीक, दूसरा करे तो गलत.

अमेरिका के डबल स्टैंडर्ड पर विदेश मंत्रालय ने साफ लहजे में कहा कि वो देश हमें क्या नसीहत देंगे, जो खुद रूस से अरबों डॉलर का कारोबार कर रहे हैं. मंत्रालय ने साफ कहा कि भारत को निशाना बनाना अनुचित और तर्कहीन है. भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगा. इतना ही नहीं, खुद जयशंकर ने भी अच्छे से सुना दिया और कहा कि दबदबे वाली व्यवस्था नहीं चलेगी. भारत अब किसी की दादागिरी नहीं मानने वाला. वहीं, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने भी अमेरिका को अच्छे से सुनाया. उन्होंने कहा कि अमेरिका उभरती बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपने घटते दबदबे को स्वीकार नहीं कर पा रहा है. कोई भी टैरिफ युद्ध या प्रतिबंध इसको नहीं रोक सकते.

चलिए विदेश मंत्रालय ने कैसे 6 प्वाइंट में अमेरिका को अच्छे से समझाया है.

1. यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद रूस से तेल आयात करने को लेकर भारत को अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा निशाना बनाया गया है. वास्तव में भारत ने रूस से तेल आयात इसलिए शुरू किया क्योंकि पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी. उस समय अमेरिका ने स्वयं भारत द्वारा ऐसे आयात को वैश्विक ऊर्जा बाजारों की स्थिरता के लिए प्रोत्साहित किया था.

2. भारत का तेल आयात भारतीय उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा की लागत को सुलभ और पूर्वानुमेय बनाए रखने के लिए है. यह वैश्विक बाजार की स्थिति के कारण उत्पन्न हुई एक अनिवार्यता है. लेकिन यह उल्लेखनीय है कि जो देश भारत की आलोचना कर रहे हैं, वे स्वयं भी रूस के साथ व्यापार में संलग्न हैं. हमारे मामले के विपरीत, उनके लिए ऐसा व्यापार कोई अनिवार्य राष्ट्रीय आवश्यकता भी नहीं है.

3. यूरोपीय संघ ने वर्ष 2024 में रूस के साथ 67.5 अरब यूरो मूल्य का वस्तु व्यापार किया. इसके अतिरिक्त, वर्ष 2023 में सेवाओं का व्यापार 17.2 अरब यूरो आंका गया. यह भारत के रूस के साथ उस वर्ष अथवा उसके बाद के कुल व्यापार से कहीं अधिक है. 2024 में यूरोप द्वारा रूस से एलएनजी (LNG) का आयात 1.65 करोड़ टन तक पहुंच गया, जो 2022 में बने 1.521 करोड़ टन के पिछले रिकॉर्ड को भी पार कर गया.

4. यूरोप-रूस व्यापार में केवल ऊर्जा ही नहीं, बल्कि उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा व इस्पात, और मशीनरी व परिवहन उपकरण भी शामिल हैं.

5. जहां तक अमेरिका का संबंध है, वह अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपनी ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) इंडस्ट्री के लिए पैलेडियम, साथ ही उर्वरक और रसायनों का आयात अब भी करता है.

6. इस पृष्ठभूमि में भारत को निशाना बनाना अनुचित और तर्कहीन है. किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तरह, भारत भी अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा.

क्या है रास्ता?

इस पूरे प्रकरण में साफ है कि अमेरिका का रुख दोहरा है। एक तरफ वह भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित करता है, और दूसरी तरफ उसी के लिए दंडित करने की धमकी देता है। ट्रंप की नीति न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार को भी अस्थिर कर सकती है। अगर भारत जैसा बड़ा खरीदार रूस से तेल खरीदना बंद करता है, तो तेल की कीमतें वैश्विक स्तर पर बढ़ सकती हैं, जिसका असर अमेरिकी जनता पर भी पड़ेगा।

भारत के लिए इस स्थिति में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। रूस के साथ लंबे समय से चली आ रही दोस्ती और सामरिक साझेदारी भारत के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, अमेरिका के साथ आर्थिक और रक्षा संबंधों को संतुलित करना भी जरूरी है। भारत ने पहले भी ऐसी कूटनीतिक चुनौतियों का सामना किया है, और इस बार भी वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देकर इस संकट से निपट सकता है।

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