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देशमध्य प्रदेश

साढ़े 4 लाख पेंशनर्स नाराज़, MP में 55% DA रोक का कारण बना नियम

Editor
Last updated: July 29, 2025 9:05 am
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साढ़े 4 लाख पेंशनर्स नाराज़, MP में 55% DA रोक का कारण बना नियम
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भोपाल
 मध्य प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को फरवरी 2024 से 7वें वेतन आयोग के तहत 50 प्रतिशत महंगाई भत्ता यानि डीए दिया जा रहा था. जिसे जुलाई 2024 से बढ़ाकर 53 प्रतिशत और 1 जनवरी 2025 से 2 प्रतिशत की वृद्धि कर सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 55 फीसदी कर दिया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश के साढ़े 4 लाख पेंशनर्स को अब भी 53 प्रतिशत महंगाई भत्ता ही दिया जा रहा है. जिससे सरकार के पूर्व कर्मचारियों को हर महीने 1500 से 7 हजार यानि साल में करीब 18 हजार से 84 हजार रुपए का नुकसान हो रहा है.
25 साल पहले अलग हुए थे मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़

बता दें कि एक नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ राज्य अलग हुआ था. ऐसे में दोनों राज्यों का प्रशासनिक ढांचा और सरकारी सेवकों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर नियमावली भी अलग-अलग बनाई गई थी, लेकिन इस दौरान धारा 49(6) को लेकर फंसा पेंच आज भी सेवानिवृत्त कर्मचारियों के गले की फांस बना हुआ है. दरअसल, केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को मूल सूचकांक के आधार पर साल में दो बार जनवरी और जुलाई में मंहगाई भत्ता और पेंशनर्स को महंगाई राहत प्रदान करता है. इसके आधार पर ही राज्य के कर्मचारियों और पेंशनर्स को डीए-डीआर दिया जाता है. मध्य प्रदेश में राज्य के कर्मचारियों को केंद्र के समान डीए का लाभ तो दिया जा रहा है, लेकिन पूर्व कर्मचारी इससे वंचित हैं.
क्या है धारा 49(6)

मध्य प्रदेश के साढ़े 4 लाख और छत्तीसगढ़ के करीब 5 हजार कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए लिए राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 (6) बनाई गई थी. इसमें स्पष्ट था कि प्रदेश में रिटायरमेंट कर्मचारियों को पेंशनर्स के डीआर में बढ़ोत्तरी करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार को छत्तीसगढ़ से अनुमति लेनी होगी. बता दें कि 1 नवंबर 2000 से पहले के पेंशनर्स की जिम्मेदारी को दोनों राज्यों के बीच जनसंख्या के अनुपात में बांटा गया था. इसमें मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 73.38 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ की 26.62 प्रतिशत तय हुई थी. हालांकि इसमें स्पष्ट था कि दोनों राज्यों के पेंशनर्स को बिना किसी रुकावट के भुगतान मिलता रहेगा.
पुर्नगठन के 5 साल तक नहीं आई अड़चन

कर्मचारी नेता और पेंशनर अनिल बाजपेई ने बताया कि "साल 2005 तक मध्य प्रदेश में रिटायरमेंट कर्मचारियों को पेंशन देने के लिए धारा 49 (6) का जिक्र तक नहीं किया गया. सबको बराबर महंगाई राहत का लाभ मिलता रहा, लेकिन साल 2006 में तत्कालीन मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव ने मध्य प्रदेश में पेंशनर्स को महंगाई राहत देने के लिए छत्तीसगढ़ से सहमति लेने पर जोर देना शुरू किया. साथ ही बिना छत्तीसगढ़ के सहमति राज्य ने पूर्व कर्मचारियों को महंगाई राहत देना बंद कर दिया. हालांकि अब इस मामले को लेकर एक बार फिर कर्मचारी संगठन कोर्ट की शरण में पहुंचे हैं."
केंद्र के हस्तक्षेप पर भी नहीं बनी सहमति

बता दें कि धारा 49 (6) हटाने को लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अधिकारियों के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं. दोनों राज्यों के वित्त प्रमुख सचिव भी आपस में बात कर चुके हैं. यह भी समझौता किया गया था कि जल्द ही धारा 49 (6) को हटाया जाएगा. वहीं केंद्र सरकार ने भी इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए दोनों राज्यों को पत्र लिखा था. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने दोनों राज्यों के प्रतिनिधियों को बुलाया था, लेकिन दोनों ही राज्यों ने पूर्व कर्मचारियों के इस मामले में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई.
दोनों राज्यों के सरकारों को जारी किया नोटिस

इस मामले को लेकर मध्य प्रदेश पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष आमोद सक्सेना ने अक्टूबर 2024 में हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई है. इसमें प्रदेश के साढ़े 4 लाख पेंशनर्स को महंगाई राहत देने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य से सहमति लेने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई है. इस मामले में हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय, केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग व वित्त विभागों को नोटिस जारी किया है. साथ ही पूछा है कि मध्य प्रदेश में मंहगाई राहत देने के लिए छत्तीसगढ़ से सहमति क्यों ली जा रही है.

बिहार, झारखंड और यूपी समेत अन्य राज्यों में नहीं दिक्कत

मध्य प्रदेश अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष एमपी द्विवेदी ने बताया कि "नियमित कर्मचारी तो समय पर लाभ पा रहे हैं, लेकिन पेंशनरों को गुजारा पेंशन के लिए भटकना पड़ रहा है. 3 से 4 माह इनके भुगतान में विलंब हो रहा. इनके एरियर्स की राशि भी राजकोष में हजम हो रही है. द्विवेदी ने बताया कि राज्य के विभाजन के बाद डीआर को लेकर देश में सिर्फ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही विवाद की स्थिति है. जबकि बिहार से झारखंड अलग होने के बाद से सहमति संबंधित किसी भी प्रकार का विवाद सामने नहीं आया. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी डीआर को लेकर आपसी सहमति है."

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