ग्वालियर
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने माध्यमिक शिक्षिका सुनीता यादव की ट्रांसफर रद्द करने संबंधी याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की है कि स्थानांतरण (ट्रांसफर) सेवा का अभिन्न हिस्सा है और जब तक कोई ट्रांसफर दुर्भावनापूर्ण या मनमाना न हो, अदालत उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
क्या है पूरा मामला?
शिक्षिका सुनीता यादव का स्थानांतरण 3 अक्टूबर 2024 को इंदरगढ़ के मढीपुरा मिडिल स्कूल से दतिया जिले के रुहेरा हाईस्कूल में किया गया था। उन्होंने इस ट्रांसफर को चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रारंभ में कोर्ट ने उन्हें प्रतिवेदन देने का अवसर देते हुए जबरन ज्वॉइन न कराने के निर्देश प्रशासन को दिए थे।
लेकिन प्रशासन ने उनका प्रतिवेदन 23 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया। इसके बाद शिक्षिका ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने याचिका में दो प्रमुख तर्क दिए-
1. मढीपुरा स्कूल में शिक्षकों की कमी है
2. स्वयं स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं
कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट की एकलपीठ ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए प्रारंभिक प्रतिवेदन में कहीं भी स्वास्थ्य समस्याओं का उल्लेख नहीं था। साथ ही यह भी पाया गया कि मढीपुरा स्कूल में कुल तीन शिक्षक कार्यरत हैं और उनमें से सुनीता यादव को "सरप्लस" (अतिरिक्त शिक्षक) मानकर ही स्थानांतरण किया गया।
ट्रांसफर को बताया सेवा का अभिन्न हिस्सा
कोर्ट ने अपने फैसले में दो टूक कहा कि थानांतरण सरकारी सेवा का एक अनिवार्य पहलू है। जब तक कोई स्थानांतरण दुर्भावना से प्रेरित या असंगत न हो, तब तक उसमें न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि अब याचिकाकर्ता को कोई नई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, तो वह प्रशासन के समक्ष पुनः आवेदन कर सकती हैं और प्रशासन चाहे तो उन पर विचार कर सकता है।