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SC से प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बड़ी राहत, अंतरिम बेल के आदेश

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Last updated: May 21, 2025 5:42 pm
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8 Min Read
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चंडीगढ़

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हरियाणा के अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को ऑपरेशन सिंदूर पर एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर रिहा करने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने सीजेएम, सोनीपत की संतुष्टि के लिए जमानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त पर महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि वह दोनों पोस्ट से संबंधित कोई भी ऑनलाइन लेख या भाषण नहीं देंगे, जो जांच का विषय है।
प्रोफेसर को लगाई फटकार

मामले की सुनवाई करते हुए एक पीठ ने प्रोफेसर को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने पूछा कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश क्यों? कोर्ट ने महमूदाबाद के शब्दों के चयन पर भी सवाल उठाया और कहा कि उनका इस्तेमाल दूसरों को अपमानित करने, उनका अपमान करने और उन्हें असहज स्थिति में डालने के लिए किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन महमूदाबाद के बयानों को कानून की नजर में 'डॉग व्हिसलिंग' कहा जाता है।

जांच पर रोक से इनकार

कोर्ट ने इस मामले में जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही, हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया कि वे 24 घंटों के भीतर वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करें, जिसमें हरियाणा या दिल्ली से बाहर के अधिकारी हों। इस SIT की अध्यक्षता IG रैंक का अधिकारी करेगा और दो अन्य सदस्य SP रैंक के होंगे, जिनमें से एक महिला अधिकारी अनिवार्य रूप से शामिल होनी चाहिए। कोर्ट ने प्रोफेसर को अपना पासपोर्ट जमा कराने को कहा।

कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील दी कि जो लोग बिना सोचे समझे युद्ध की मांग कर रहे हैं, यह टिप्पणी मीडिया के लिए है. यहां उन्हीं की बात की जा रही है. इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि युद्ध के गंभीर परिणामों पर टिप्पणी करते हुए अब ये राजनीति पर उतर आए हैं? बयान फिर से पढ़िए. यह स्पष्ट है कि वह (प्रोफेसर महमूदाबाद) दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को संबोधित कर रहे हैं. हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है. लेकिन इस तरह के सांप्रदायिक मुद्दों पर बात करने का यह समय है क्या? देश एक बड़े संकट से गुजरा है. राक्षस देश में घुसे और हमारे लोगों पर हमला किया. ऐसे समय में लोग सस्ती लोकप्रियता क्यों बटोरना चाहते हैं?

इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि यह बात 10 तारीख के बाद भी कही जा सकती थी, लेकिन इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं है. एफआईआर क्यों दर्ज होनी चाहिए? अगले ही दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे बयान देने की क्या ज़रूरत थी इस समय? इंतजार कर सकते थे. प्रोफेसर महमूदाबाद के वकील सिब्बल ने कहा कि वह उन्हें सलामी दे रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें समझ नहीं आता, लोग इस परिस्थिति में ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं. हर कोई बोलने के अधिकार की बात कर रहा है. अधिकार की बात हो रही है. लेकिन आपका कर्तव्य कहां है?

कोर्ट ने पूछा- 'माया और संकेत' जैसे शब्दों के इस्तेमाल का क्या कारण

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि 'माया और संकेत' जैसे शब्दों के इस्तेमाल का क्या कारण है? कपिल सिब्बल ने कहा कि वह ऑक्सफोर्ड के विद्वान हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यही तो डॉग-व्हिस्लिंग (छिपा हुआ सांकेतिक संदेश) कहलाता है. कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई आपराधिक मंशा नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि कोई छात्र ऐसा ही पोस्ट करे तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो जाती है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान की पोस्ट की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि हमें यकीन है कि वह बहुत शिक्षित हैं. आप दूसरों को आहत किए बिना भी बहुत सरल भाषा में अपनी बात कह सकते थे. ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर सकते थे, जो सरल और सम्मानजनक हों. सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर कहा कि इस मामले की जांच के लिए 24 घंटे के अंदर भारतीय पुलिस सेवा के तीन अधिकारियों की SIT गठित की जाए.

प्रोफेसर को किसी माध्यम से कोई बयान नहीं देने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को राहत देते हुए अंतरिम जमानत दे दी. सर्वोच्च न्यायालय ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को यह हिदायत भी दी कि वह सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट से जुडा कोई दूसरा पोस्ट नहीं लिखेंगे. प्रोफेसर देश छोड़कर नहीं जा सकेंगे और उन्हें अपना पासपोर्ट सोनीपतकी कोर्ट में सरेंडर करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने CJM सोनीपत की ओर से बेल बॉन्ड की शर्तें तय कर भरे जाने के आधार पर दोनों मामलों में अंतरिम जमानत दे दी. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने जमानत देते हुए कहा कि आरोपी किसी मामले पर आगे कोई बयान किसी भी माध्यम से नहीं देगा. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर SIT को जांच के दौरान ऐसा लगता है कि आरोपी को गिरफ्तार करने की जरूरत है, तो वह कोर्ट में आकर इसकी मांग कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद को अंतरिम जमानत तो दे दी, लेकिन जांच पर रोक नहीं लगाई है. कोर्ट ने दिल्ली और हरियाणा से इतर तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की जांच समिति गठित करने को कहा है. एसआईटी की अगुवाई आईजी स्तर के अधिकारी करेंगे. तीन अधिकारियों में एक महिला अधिकारी भी होगी. सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने यह आदेश भी दिया कि आरोपी प्रोफेसर महमूदाबाद कोई लेख, पोस्ट या मीडिया वक्तव्य नहीं देगा. देश में हाल ही में हुए आतंकी हमले या हमारी जवाबी प्रतिक्रिया (ऑपरेशन सिंदूर) पर प्रोफेसर कोई टिप्पणी नहीं करेगा.

कोर्ट ने पूछा- महिला अधिकारियों के अपमान वाला बयान कहां

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि महिला अधिकारियों का अपमान करने वाला बयान कहां है? हम वह पढ़ना चाहते हैं. क्या वह हमारी महिला अधिकारियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से अपमान कर रहा है? इस पर असिस्टेंट सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि वह पहले बयान में है. उन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी का जिक्र किया है. मेरे पास इस समय याचिका की कॉपी नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोस्ट में कुछ शब्दों के दोहरे अर्थ हो सकते हैं. निजी विश्वविद्यालय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं हैं. वहां प्रोफेसर और छात्र समस्या पैदा नहीं कर सकते. प्रोफेसर ने युद्ध विरोधी होने की बात कहते हुए बताया है कि युद्ध में सैनिकों और नागरिकों के परिवार कैसे कष्ट झेलते हैं. उन्होंने उन देशों के बारे में बात की है जो हथियार बनाते हैं. उन देशों की राजनीति के बारे में लिखा है. हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. कोर्ट ने हरियाणा सरकार को प्रोफेसर की याचिका पर जवाब देने के लिए भी समय दे दिया है.

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