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राजनीति

प्रयागराज : महाकुंभ से मिले संदेश के कारण नागपुर में हुआ संघ-भाजपा का महासंगम

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Last updated: April 2, 2025 9:03 am
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8 Min Read
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नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रविवार को नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय का दौरा बहु प्रतिक्षित था. पिछले साल बीजेपी और संघ के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बाद इस यात्रा पर पूरे देश की निगाहें थीं. हालांकि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कुछ समय में आरएसएस की तारीफों की पुल बांधे हैं उससे पहले से स्पष्ट था कि संघ और बीजेपी के बीच में अब कोई कटुता नहीं रह गई है. हेडगेवार स्मृति मंदिर जो आरएसएस के पहले दो सरसंघचालकों के.बी. हेडगेवार और एम.एस. गोलवलकर की स्मृति में बना है, वहां मोदी का जाना खुद संघ के लोगों के लिए अप्रत्याशित रहा. इसे भाजपा और आरएसएस के बीच संबंधों को सुधारने और एकता प्रदर्शित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. पर मोदी नागपुर में डॉ. आंबेडकर से संबंधित पवित्र दीक्षाभूमि जाना नहीं भूले. ये वही जगह है जहां डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था. आइये मोदी की इस यात्रा के राजनीतिक पहलुओं की चर्चा करते हैं.

1-समझना होगा प्रयागराज महाकुंभ के बाद नागपुर के घटनाक्रम को

प्रयागराज में कुंभ हर 12 साल पर लगता रहा है. पर इस बार जिस तरह की भीड़ उमड़ी और जिस तरह का उत्साह पूरे देश में देखने को मिला वह अभूतपूर्व था. इसके पीछे हिंदुत्व की उभार से इनकार नहीं किया जा सकता है. पूरा उत्तर भारत कुंभ के दौरान चोक हो गया था. करीब 65 करोड़ लोग अगर कुंभ पहुंचे तो इसका मतलब है कि देश में रहने वाला हर दूसरा आदमी कुंभ आया. जात-पात से परे जाकर हिंदुओं ने संगम स्‍नान किया. यह एक हिंदू पुनर्जागरण जैसी चीज थी. जाहिर है कि इसके पीछे संघ की दशकों की मेहनत थी. इतना ही नहीं संघ के कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जबरदस्त मेहनत की थी. कुंभ की व्यवस्था केवल सरकारी अधिकारियों के वश की बात नहीं थी. शायद यही कारण है कि पीएम मोदी ने अपनी नागपुर दौरे में  स्वयंसेवकों के प्रयागराज के महाकुंभ मेले में निभाई गई भूमिका के लिए सराहना की. और इससे यह भी साबित हो रहा है कि बीजेपी के कोर एजेंडे में संघ की भूमिका महत्वपूर्ण हो रही है. क्‍योंकि, मोदी की खा‍स बात यह है कि वह हवा के रुख को बखूबी पहचानते हैं. और संघ भी यह समझ रहा है कि हिंदुत्‍व की बहती हवा में वह भाजपा से अलग खड़ा नहीं रह सकता.

2-क्‍या संदेश है संघ के लिए

आम तौर पर ऐसी चर्चा चल रही थी बीजेपी और आरएसएस में एक दूरी आ गई है. साल 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत की कुछ टिप्पणियों को पार्टी नेतृत्व और प्रधानमंत्री मोदी की सीधी आलोचना के रूप में भी देखा गया था. माना जा रहा था कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का एक बयान संघ को बहुत नागवार लगा था. जिसके बाद संघ लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टो को सपोर्ट देने से पीछे हट गया था. लोकसभा चुनाव से पहले, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि भाजपा अब उस दौर से आगे निकल चुकी है जब उसे संघ की जरूरत थी, और अब वह सक्षम है तथा अपने फैसले खुद लेती है. इसके बाद बीजेपी और संघ के बीच कुछ दूरियां देखने को मिलीं. पर हरियाणा,  महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों की जीत में आरएसएस की बहुत बड़ी भूमिका निकल कर सामने आई.

देखने को यह भी मिला कि जो आरएसएस पहले पर्दे के पीछे से बीजेपी के लिए काम करती थी अब वो खुलकर अपने कार्यों के बारे में मीडिया को भी बताने लगी थी. जैसे हरियाणा विधानसभा और दिल्ली विधानसभा चुनावों में संघ की पूरी स्ट्रैटजी अखबारों में छपने लगी. पर असली खेल महाकुंभ के बाद हुआ है. महाकुंभ में जिस तरह पूरे देश से हिंदू उमड़े हैं वह एक तरीके से हिंदुओं का पुनर्जागरण ही है. जाहिर है कि इसके पीछे कहीं न कहीं आरएसएस की बरसों से चल रही साधना है. मोदी की यात्रा से यह साफ हो गया है कि संघ अब केवल वैचारिक और सांस्कृतिक संस्था ही नहीं है.  बीजेपी में उसकी भूमिका ऊपर उठ चुकी है. 

3-क्‍या संदेश है भाजपा के लिए

भाजपा के नेताओं ने पूर्व में बहुत सावधानी बरतते हुए सरकार और संघ के बीच एक क्लीयर रेखा खींच दी थी. पर नरेंद्र मोदी कई मौकों पर संघ की तारीफ करने में नहीं चूकते हैं. इसके बारे में कहा जाता है कि खुद नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारक रहे हैं इसलिए उन्हें किसी प्रकार की हिचक नहीं होती है. इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस तरह की तारीफ से बचते रहे.अभी कुछ दिन पहले मोदी ने एक पॉडकास्ट में अपने जीवन को सही मार्गदर्शन देने के लिए संघ का आभार जताया था.  प्रधानमंत्री ने आरएसएस की तारीफ नागपुर में भी आरएसएस को एक ऐसे संगठन के रूप में संदर्भित किया जिसने समर्पण और सेवा के उच्चतम सिद्धांतों को कायम रखा. मोदी ने संघ की राष्ट्र निर्माण और विकास में रचनात्मक भूमिका को रेखांकित करके अपनी 2047 तक विकसित भारत की योजनाओं में संघ की भूमिका के महत्व को भी दर्शाया. जाहिर है कि बीजेपी में बनने वाले नए अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी को ढूंढने और उसे तैयार करने की भूमिका में संघ की अब महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है.

4-क्‍या संदेश है हिंदू एकता के लिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ मुख्यालय के दौरे के साथ ही डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन से संबंधित दीक्षाभूमि का भी दौरा कर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. आरएसएस पर हिंदू धर्म का एक तबका आरोप लगाता रहा है कि संघ अभी भी वर्ण व्यवस्था का पोषक है. संघ का कोई प्रमुख दलित या पिछड़ी जाति का शख्स नहीं बन सका. पर पीएम मोदी ने अपनी छवि एक पिछड़े नेता ओर दलितों के शुभचिंतक के रूप में बना ली है. शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने संघ मुख्यालय में दिये गये अपने संबोधन में भी बाबा साहेब को याद किया और भारतीय संविधान की भरपूर प्रशंसा की.बीजेपी और संघ दोनों के लिए दलितों के बीच पैठ बनाना आज पहली प्राथमिकता है. दीक्षाभूमि वही जगह है जहां आंबेडकर ने 1956 में अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था. मोदी दीक्षाभूमि स्थित स्तूप के भीतर गए और वहां रखी आंबेडकर की अस्थियों को श्रद्धांजलि अर्पित की. मोदी ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों के भारत को साकार करने के लिए और भी अधिक मेहनत करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहरा कर दलित लोगों को संदेश दिया है. 

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