नई दिल्ली
नेत्रदान को लेकर जागरूकता का स्तर बढ़ा है। दान में मिले कार्निया नेत्र बैंकों में जमा हो रहे हैं। यहीं से प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध होते हैं। मरीजों को इसकी जानकारी नहीं हो पाती और वे दूसरे राज्यों का चक्कर लगाते रहते हैं। इसमें समय, श्रम और धन तीनों अनावश्यक बर्बाद होते हैं। देश में 100 से अधिक नेत्र बैंक हैं। सभी जगह कार्निया के उपयोग की दर भी अलग है। कहीं कार्निया का उपयोग नहीं हो पाता तो कहीं उसकी कमी से प्रत्यारोपण नहीं हो पाते।
इन समस्याओं के समाधान के लिए एम्स के डाॅ. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र स्थित राष्ट्रीय नेत्र बैंक (एनईबी) आगे आया है। आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सहयोग से एप विकसित कर रहा है। इसकी मदद से न केवल अपने राज्य के नेत्र बैंकों में कार्निया की उपलब्धता का पता चलेगा, बल्कि वाॅट्सएप के जरिए लोकेशन भी प्राप्त होगी। वहीं, सभी नेत्र बैंक एक साझा प्रणाली से भी जुड़ेंगे। कम उपयोग होने पर कार्निया ज्यादा उपयोग वाले नेत्र बैंकों को भेजे जा सकेंगे।
राष्ट्रीय नेत्र बैंक 40वां नेत्रदान पखवाड़ा मना रहा है, जो आठ सितंबर तक चलेगा। आरपी सेंटर की प्रमुख प्रो. राधिका टंडन के मुताबिक एप पर तेजी से काम चल रहा है। अगले दो से तीन महीने में इसे लांच कर दिया जाएगा। नेत्र बैंकों का सारा डाटा इस पर उपलब्ध होगा।
हर शहर में वाॅट्सएप के जरिए लोकेशन भी आ जाएगी। एआई चैटबाट भी लाॅन्च किया जाएगा, जिस पर मरीज या तीमारदार टाइप करके या वाइस नोट के माध्यम से अपनी जिज्ञासाओं के जवाब पा सकेंगे। इसके अलावा देश के अन्य नेत्र बैंकों के कामकाज में भी लगातार मदद की जा रही है।
इसके लिए कार्नियल संरक्षण भंडारण माध्यमों (एमके मीडिया और एक्सस्टोरसोल मीडिया) का निर्माण और वितरण किया जा रहा है, जो भारत सरकार के एनपीसीबी से वित्तपोषित है। यह एम्स के नेत्र औषध विज्ञान विभाग में ही निर्मित किया जाता है।
वर्ष 2024 में 24 राज्यों के 114 नेत्र बैंकों में एक्सस्टोरसोल मीडिया की 2824 से अधिक वायल वितरित की गईं। डोनर कार्निया के विकल्प के तौर पर बायो इंजीनियर्ड कार्निया आईआईटी-दिल्ली के सहयोग से तैयार किया है। खरगोश में इसका प्रत्यारोपण सफल रहा। अब क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी है।
राष्ट्रीय नेत्र बैंक एक नजर में
36,000 कार्निया एकत्र की पिछले 60 वर्षों में।
26,000 से अधिक कार्निया प्रत्यारोपण पिछले छह दशक में।
500 से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सकों को एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी तकनीक की ट्रेनिंग।
1,931 कार्निया मिले देशभर से वर्ष 2024 में।
1,611 कार्निया अस्पताल कार्निया प्राप्ति कार्यक्रम (एचसीआरपी) से मिले।
1,636 कार्निया प्रत्यारोपण वर्ष 2024 में
50 प्रतिशत है कार्निया उपयोग की राष्ट्रीय दर।
85 प्रतिशत है आरपी सेंटर के एनईबी में कार्निया उपयोगी की दर।
संक्रमण और चोट बन रही कार्निया डैमेज की वजह
प्रो. टंडन के मुताबिक संक्रमण और चोट के चलते कार्निया डैमेज के सबसे ज्यादा मामले आते हैं। आंख में कुछ चले जाने पर आमतौर पर लोग रगड़ने लगते हैं। इसका कार्निया पर असर पड़ता है। वहीं, चोट लगने की स्थिति में भी लोग खुद से स्टेरायड डाल लेते हैं। ये आंख में संक्रमण की वजह बनता है। कई बच्चों को जन्मजात भी कार्निया की बीमारी होती है। ऐसी स्थिति में भी कार्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। देश में हर वर्ष लगभग एक लाख लोगों को कार्निया प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। जबकि केवल 25 से 30 हजार को ही इसके लिए कार्निया उपलब्ध हो पाता है।