पटना
चुनाव आयोग जल्द ही 2003 की बिहार मतदाता सूची अपनी वेबसाइट पर जारी करेगा. इस मतदाता सूची में लगभाग 4.96 करोड़ यानी 60 फीसदी से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं, जिन्हें वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के लिए किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी.
''बिहार में 4.96 करोड़ मतदाता, कुल मतदाताओं का 60 प्रतिशत, जिन्हें 2003 के विशेष गहन पुनरीक्षण में सूचीबद्ध किया गया था, उन्हें पुनरीक्षण के बाद लाए गए मतदाता सूची के प्रासंगिक हिस्से को छोड़कर अपनी तिथि, स्थान या जन्म को स्थापित करने के लिए कोई सहायक दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है.'' – ज्ञानेश कुमार, मुख्य चुनाव आयुक्त
चुनाव आयोग ने बिहार के 2003 की मतदाता सूची को अपनी वेबसाइट पर डाल दिया है। इसमें 4.96 करोड़ मतदाताओं की जानकारी है। चुनाव आयोग ने सोमवार (30 जून) को यह जानकारी दी। चुनाव आयोग के अनुसार इन 4.96 करोड़ मतदाताओं को कोई भी कागजात जमा करने की जरूरत नहीं है। इनके बच्चों को भी अपने माता-पिता से संबंधित कोई और कागज जमा नहीं करना होगा। आयोग का यह स्पष्टीकरण विपक्षी दलों के विरोध के बाद आया है। कांग्रेस, टीएमसी, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियों ने चुनाव आयोग के 'स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन'(Special Intensive Revision) पर सवाल उठाए थे। उनका कहना था कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा करना ठीक नहीं है।
4.96 करोड़ मतदाताओं को बड़ी राहत
चुनाव आयोग ने कहा कि 2003 की मतदाता सूची आसानी से मिलने से बिहार में चल रहे 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) में बहुत मदद मिलेगी। चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण के बाद अब लगभग 60 प्रतिशत मतदाताओं को अब कोई कागजात जमा नहीं करना होगा। आयोग ने कहा, 'उन्हें (4.96 करोड़ मतदाताओं को) मतदाता सूची में 2003 की मतदाता सूची से अपनी जानकारी की जांच करनी है और भरा हुआ गणना फॉर्म (Enumeration Form) जमा करना है।
माता-पिता का विवरण भी आएगा काम
आयोग ने आगे कहा कि जिनके नाम 2003 की बिहार मतदाता सूची में नहीं हैं, वे भी अपने माता-पिता के लिए कोई और कागजात देने के बजाय 2003 की मतदाता सूची का अंश इस्तेमाल कर सकते हैं। 'ऐसे मामलों में, उनके माता या पिता के लिए किसी अन्य दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी। केवल 2003 इलेक्टोरल रोल का प्रासंगिक अंश/विवरण ही पर्याप्त होगा। ऐसे मतदाताओं को भरे हुए गणना फॉर्म (Enumeration Form) के साथ केवल अपने लिए दस्तावेज जमा करने होंगे।'
विपक्षी दल लगा रहे हैं साजिश का आरोप
चुनाव आयोग 25 जून से बिहार में 'विशेष गहन पुनरीक्षण' (SIR) कर रहा है। इसका मतलब है कि बिहार के लिए मतदाता सूची फिर से तैयार की जाएगी। इस कदम का कई विपक्षी दलों ने विरोध किया है। कांग्रेस का आरोप है कि इससे राज्य मशीनरी का उपयोग करके मतदाताओं को जानबूझकर बाहर किए जाने का खतरा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कदम को 'एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) से भी ज्यादा खतरनाक' बताया और आरोप लगाया कि उनका राज्य, जहां अगले साल चुनाव होने हैं, असली 'लक्ष्य' है।
बीएलओ घर-घर जाकर कर रहे हैं सर्वे
चुनाव आयोग के इस अभियान में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) इस गहन संशोधन की प्रक्रिया के दौरान सत्यापन के लिए घर-घर जाकर सर्वे कर रहे हैं। पिछली बार BLO घर-घर जाकर एक 'गणना पैड' भरवाते थे, जिसे घर के मुखिया को भरना होता था। लेकिन इस बार, घर के प्रत्येक मतदाता को एक अलग गणना फॉर्म जमा करना होगा। 1 जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में जोड़े गए मतदाताओं को अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होगा।
नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज?
भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के फॉर्म 6 नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए है। इसमें आवेदकों को यह घोषणा करने के लिए हस्ताक्षर करने होते हैं कि वे नागरिक हैं और इस तथ्य को साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करते हैं। लेकिन, चुनाव ने अब बिहार में विशेष रोल संशोधन अभ्यास के लिए नागरिकता का प्रमाण देने के लिए एक नया घोषणा पत्र जोड़ा है। नागरिकता साबित करने के लिए पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, एससी/एसटी प्रमाण पत्र और 1 जनवरी 2003 तक बिहार की मतदाता सूची में माता-पिता के नामों का एक अंश जैसे दस्तावेज पर्याप्त माने जाएंगे। अन्य दस्तावेजों में पेंशन भुगतान आदेश, स्थायी निवास प्रमाण पत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, स्थानीय अधिकारियों द्वारा परिवार रजिस्टर और भूमि आवंटन प्रमाण पत्र शामिल हैं।