अजमेर
अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा किए गए दावे पर शनिवार को सिविल कोर्ट में सुनवाई होनी थी, लेकिन यह सुनवाई टल गई। कोर्ट ने अब इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 31 मई निर्धारित की है। विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में दरगाह के गर्भगृह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा किया है, जिसे लेकर मामला लगातार चर्चा में बना हुआ है।
कोर्ट में प्रस्तुत की गई जानकारी के अनुसार शनिवार को दो प्रमुख कारणों से सुनवाई नहीं हो सकी। पहले तो अजमेर जिला न्यायालय की नई बिल्डिंग के उद्घाटन समारोह के चलते कोर्ट की नियमित कार्रवाई प्रभावित रही। दूसरा सुप्रीम कोर्ट से जुड़े वकील की अनुपस्थिति और नए प्रार्थना-पत्रों के प्रस्तुत होने के कारण जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता महसूस की गई।
इससे पहले याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता ने अदालत से यह मांग की थी कि जब तक इस मामले का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक किसी भी सरकारी विभाग की ओर से दरगाह में चादर पेश न की जाए। इस बाबद उन्होंने एक स्थगन प्रार्थना-पत्र दाखिल किया था, जिस पर शनिवार को अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपना जवाब अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया।
इसके साथ ही प्रतिवादी संख्या 2 और 3 की ओर से एक प्रार्थना-पत्र दाखिल कर यह मांग की गई कि वादी की याचिका खारिज की जाए क्योंकि इसमें भारत संघ की ओर से कोई स्पष्ट प्रार्थना नहीं की गई है। इस पर विष्णु गुप्ता को जवाब देने के लिए कहा गया है।
गौरतलब है कि यह मामला 27 नवंबर 2024 को उस वक्त चर्चा में आया, जब अजमेर सिविल कोर्ट ने विष्णु गुप्ता द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और ASI को नोटिस जारी किया था। इसके बाद दरगाह कमेटी ने याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए कोर्ट में जवाबी एप्लीकेशन दायर की थी। वहीं दरगाह से जुड़ी अंजुमन कमेटी ने भी राजस्थान हाईकोर्ट में इस याचिका को चुनौती दी है।
मामले की गंभीरता और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए अन्य पक्षकारों ने भी इस विवाद में हिस्सा लेने की मांग की है। इनमें अंजुमन कमेटी, दरगाह दीवान गुलाम दस्तगीर, ए इमरान (बेंगलुरु) और राज जैन (होशियारपुर, पंजाब) शामिल हैं। इन्होंने स्वयं को पक्षकार बनाने के लिए कोर्ट में अर्जी लगाई है।
अब सबकी निगाहें 31 मई को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय हो सकता है कि अदालत इस ऐतिहासिक और संवेदनशील स्थल को लेकर आगे क्या दिशा-निर्देश देती है।